हडप्पा सभ्यमा नामकरण:-
इस सभ्यमा का सबसे प्रथम स्थल हडप्पा खोजा गया था। इस लिए इसे हडप्पा सभ्यता कहते है । हडप्पा सभ्यता के प्रारंभिक स्थल सिंधु नदी के आस पास केन्द्रित थे। इस प्रकार इस सभ्यता को सिन्धु सभ्यता कहते है। हडप्पा सभ्यता के अन्य नाम सिन्धु-सरस्वती सभ्यता] कांस्य युगीन सभ्यता भी है। भारत में पहली बार नगरो का उदय इसी सभ्यता के समय हुआ। इस लिए इसे प्रथम नगरीय क्रान्ति भी कहते हैं। सुमेरियन अभिलेखों में हडप्पा सभ्यता को मेलुहा सभ्यता कहा गया है।
- भारत में प्रागैतिहासिक स्थलों को खोजने का कार्य किया जाता है- भारतीय पुरातत्व एवं सर्वेक्षण विभाग द्वारा
- भारतीय पुरातत्व विभाग के जन्मदाता- अलेक्जेंडर कनिंघम
- भारतीय पुरातत्व विभाग की नींव पडी- लार्ड कर्जन के काल में

सिन्धु सभ्यता की भौगोलिक स्थिति:-
सिन्धु सभ्यता का उदय भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमोत्तर भाग में हुआ। यही से इसका विस्तार दक्षिण से पूरब की ओर हुआ।यह भारतीय उपमहाद्वीप के 3 राष्ट्रों-भारत पाकिस्तान व अफगानिस्तान में फैली थी। इस सभ्यता से जुडे विभिन्न चरणों के लगभग 1400 स्थालों की खोदाई की जा चुकी है। इसमें 925 वस्तियां भारत में और 475 वस्तियां पाकिस्तान में हैं।
सबसे कम स्थल अफगानिस्तान से प्राप्त हुए है।
1. मुण्डीगाक
2. शुर्तुगुई

हडप्पा सभ्यता की विशेषताएं:-
- आघ-ऐतिहासिक सभ्यता- इसके साहित्यक स्त्रोत प्राप्त है किन्तु इन्हें अभी तक पढा नही जा सका।
- कांस्य युगीन सभ्यता
- समाज-समाज मातृसत्तात्मक समतामुलक व शान्तिप्रिय था।
- कृषि के साथ व्यापार की प्रधानता थी। उधोग व व्यापार स्थानीयकरण व विशेषीकरण पर आधारित था।
- धार्मिक जीवन – देवी देवता मूलक (मातृदेवी व पशुपति शिव ) इसके अतिरिक्त हडप्पा सभ्यता के लोग जीव-जन्तुओ वनस्पतियो की पूजा करते थे।
- भारत की प्रथम नगरीय सभ्यता है।
- लोहे से अपरिचित।
सिन्धु सभ्यता की नगर योजना: –
- इस सभ्यता के लोग सुव्यवस्थित व योजनाबद्ध थे।
- नगर जाल की तरह व्यवस्थित थे।
- सडके एक-दूसरे को समकोण पर काटती थी।
- पूरा शहर छोटे-छोटे ब्लॉक पर आधारित था।
- भवनो का निर्माण पकी ईटो से किया गया था।
- नालियों को पकी इंटो से बनाया गया था।
- नगर प्रायः दो खण्डों पश्चिमी टीले व पूर्वी में बंटे थे।
पश्चिमी | पूर्वी |
गढी क्षेत्र | अधिकतम जनसंख्या निवास |
इन टीलों पर किले अथवा दुर्ग स्थित थे। | नगर या आवास क्षेत्र के साथ |
अपेक्षाकृत छोटे किन्तु ऊँचे थे। | अपेक्षाकृत बडा |
मुख्यतः प्रशासनिक व सार्वजनिक भवन | सामान्य नागरिक, व्यापारी, शिल्पकार ,कारीगर और श्रमिक रहते थे। |
- यह सभ्यता जल प्रबंध व स्वच्छता के लिए विश्व विख्यात है। धौलावीरा मे सवसे उत्तम जल प्रबन्धन प्रणाली प्राप्त हुई है। यहाँ के लोग वर्षा जल को एकञ करके सालभर पीने के प्रयोग में लाते थे।
- लोग लेखन गणना और मापन से परिचित थे।
- लिपि भाव चित्रात्मक थी
- चित्रों में सर्वाधिक चित्र तथा मछली के पाए गए थे साथ ही सर्प लेखन के साक्ष्य मिले हैं
हड़प्पा सभ्यता का विकास
शुरू में साक्ष्यों के अभाव में जॉन मार्शल, क्रैमर गार्डन ,चाइल्ड व्हीलर का मानना था कि इस सभ्यता का विकास सुमेरियन लोगों द्वारा किया गया किंतु बाद में इस बात की पुष्टि हुई की हड़प्पा सभ्यता स्थानीय ग्रामीण संस्कृतियों के क्रमिक विकास का परिणाम थी।
हड़प्पा सभ्यता की तिथि
शुरुआत में सापेक्ष विधि द्वारा हड़प्पा सभ्यता की तिथि को निर्धारित किया गया, जिसमें कुछ पुरातत्वबेत्ताओ द्वारा निम्नलिखित काल समय को बताया गया-
जॉन मार्शल=3250 ई. पू.-2750 ई.पू.
क्रेमर =2800 ई.पू.-2500 ई.पू.
मार्टिमर व्हीलर= 2500 ई.पू.-1500 ई.पू.
हड़प्पा कालीन नगर व उनकी विशेषताएं
हड़प्पा कालीन नगरों को तीन कालों में बांटा जाता है हड़प्पा कालीन कुछ नगरों में तीनों कालों के लक्षण प्राप्त हुए हैं
(1) प्राक हड़प्पा स्थल(3500 -2600 ई.पू.)
- यह पहले गांव थे। फिर धीरे-धीरे शहर में बदले ।
- इसके अंतर्गत अफगानिस्तान में मंडीगांव ,पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित किलेगुल मोहम्मद अंजीरा आदि प्रमुख है। भारत में उत्तरी राजस्थान में स्थित कालीबंगा तथा हरियाणा में राखीगढ़ी आदि प्रमुख है।
(2) परिपक्य हड़प्पा कालीन स्थल
- नगरी चरण (पंजाब सिंध में मुख्यता सिंधु घाटी में)
- 7 नगर
(3) उत्तर हड़प्पा चरण(1900 ई.पू.-1300 ई.पू.)
- रोजदी और रंगपुर
महत्वपूर्ण स्थल एवं विशेषताएं-
- अब तक कुल 1500 स्थलों की खोज की जा चुकी है। जिनमें केवल 7 को ही नगर की संज्ञा दी जा सकती है-
1 .हड़प्पा-

निदेशक –जॉन मार्शल
खुदाई करता–दयाराम साहनी (1921ई. )
स्थान –
- वर्तमान में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के माउंटगुमरी जिले में है।
- रावी नदी के बाएं तट पर।
विशेषताएं–नगर दो भागों में बटा था:
1. पश्चिमी /दुर्ग टीला (मार्टीमर व्हीलर द्वारा टीला नाम दीया गया।)
2. पूर्वी टीला -नगर की संज्ञा
साक्ष्य –
- स्त्री के गर्भ से पौधे निकले हुए (उर्वरता की देवी)
- R-37 कब्रगाह
- सर्वाधिक अभिलेखीय मोहरे प्राप्त हुई
- स्वास्तिक चिन्ह के साक्ष्य मिले हैं।
2. मोहनजोदड़ो-(मृतकों का टीला)

खोजकर्ता–राखल दास बनर्जी( 1922)
स्थान-सिंध प्रांत के लरकाना जिले में सिंधु नदी के दाहिने तट पर
विशेषताएं-
- सर्वाधिक जनसंख्या वाला नगर
- बृहद स्नानागार-धर्म अनुष्ठान संबंधी स्नान के लिए (तत्कालीन विश्व का आश्चर्य- जॉन मार्शल)
- सर्वाधिक अभिलेख युक्त मोहरे प्राप्त हुई।
- विशाल अन्नागार (सबसे बड़ी इमारत की संरचना)
- विशाल भवन (पुरोहित आवास)
- कांस्य की नृत्यरत नारी की मूर्ति
- पुजारी (योगी) की मूर्ति
- मुद्रा पर अंकित पशुपति शिव की मूर्ति
- सड़कें सीधी दिशा में एक दूसरे को समकोण पर काटती थे (ऑक्सफोर्ड सर्कस)(कंकड़ को पक्का करने का एकमात्र साक्ष्य)
अन्य नाम-
- सिंधु का बाग
- स्तूप टीला (कनिष्क के द्वारा यहां स्तूप निर्माण कराया गया)
- हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो जुड़वा राजधानी – स्टुअर्ट पिग्गट
नोट- पशुपति शिव कि प्राप्त मोहरों में दाएं ओर चीता व हाथी का चित्र अंकित है एवं बायी ओर गैंडा व भैसा का चित्र अंकित है।
- इस नगर से मलेरिया के साक्ष्य मिले हैं।
3. लोथल -(लघु हड़प्पा /लघु मोहनजोदड़ो)

खोजकर्ता – एस.आर.राव (1954)
स्थान-
- गुजरात के अहमदाबाद जिले
- भोगवा नदी के
साक्ष्य –
- डॉकयार्ड/ गोदीबाड़ा /बंदरगाह के साक्ष्य
- मुर्दों का नगर (20 समाधिया एक साथ पाई गई-3 युग्मित समाधि प्राप्त हुई है जो कि सती-प्रथा को दर्शाती हैं।)
- हाथी दांत का पैमाना प्राप्त हुआ है।
- चावल ,धान व बाजरे के प्रमाण मिले हैं।
- सींग युक्त देवता की कृति प्राप्त हुई है।
- छोटी बेलनकार मोहरे प्राप्त हुई है (बड़ी बेलनकार मोहरे मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई है)
- मनके बनाने का कारखाना
- अग्निकुंड के साक्ष्य
- दरवाजा गली की ओर ना खोल कर सड़क की ओर खुलता है
- घोड़े की मूर्ति
- दो राक्षस के मुंह वाली मोहर
4-चन्हूदडो –
खोजकर्ता- एन जी मजूमदार
स्थान- पाक के सिंध प्रांत में सिंध नदी तट पर
विशेषताएं-
- एकमात्र पूरा स्थल जहां से वक्राकार ईटें मिली है।
- प्राक हड़प्पा, विकसित हड़प्पा व उत्तर हड़प्पा तीनों के साक्ष्य मिले हैं।
- मनके बनाने के कारखाने मिले हैं।
- नगर दुर्गीकृत नहीं है।
- सौंदर्य प्रधान वस्तुएं प्राप्त हुई है।
- बिल्ली का कुत्ते के द्वारा पीछा करते हुए पैरों के निशान मिले हैं।
5.कालीबंगा (काले रंग की चूड़ियां):-
खोजकर्ता-अमलानंद घोष
स्थान-राजस्थान के गंगानगर जिले में घग्गर नदी के तट पर
विशेषताएं-
- सात अग्निकुंड के साक्ष्य
- जुता हुआ खेत + हल रेखा
- अलंकृत ईट
- खोपड़ी में छेद-शल्य चिकित्सा के साक्ष्य
- भवन कच्ची ईटो के बने
- भूकंप के प्रमाण
- ऊंट की हड्डियों के साक्ष्य
6.धोलावीरा-
खोजकर्ता-आर ए बिष्ट, जे पी जोशी
विशेषताएं-
- तीन भागों में बटा(दुर्ग किला, मध्य नगर, निचला नगर)
- नगर आयताकार
- उन्नत जल प्रबंधन प्रणाली
- इस नगर का दुर्ग किला पश्चिम के बजाय दक्षिण में स्थित है।
- प्रवेश द्वार पर नाम पट्टिका के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
7. बनावली:-
खोजकर्ता-आर. ए. बिष्ट(1973)
स्थान-हरियाणा के हिसार जिले में
विशेषताएं-
- अच्छे किस्म के जौ के प्रमाण प्राप्त हुए हैं।
- मिट्टी का हल प्राप्त हुआ है।
- सड़कें नगरों को तारांकित भागों में विभाजित करती है।
- अव्यवस्थित जल निकास प्रणाली
अन्य महत्वपूर्ण हड़प्पा कालीन स्थल एवं उनकी विशेषताएं:-
मांण्डा(j&k)–सबसे उत्तरी स्थल
हरियाणा-
- राखीगढ़ी (भारत में इस सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल) ,
- कुणाल
उत्तर प्रदेश-
- बागपत(सनौली) ,
- सहारनपुर ,
- मेरठ
गुजरात-
- रंगपुर (धान की भूसी के साक्ष्य) ,
- सुरकोटड़ा (1. घोड़े की अस्थि कंकाल, 2. शॉपिंग कॉन्प्लेक्स के साक्ष्य)
महाराष्ट्र(दैमाबाद)-
- सबसे दक्षिणतम बिंदु
- तावे के रथ के साक्ष्य
हड़प्पा सभ्यता का सामाजिक जीवन-
समाज तीन भागों में विभाजित था-
- विशिष्ट वर्ग
- मध्यमवर्ग
- कमजोर वर्ग
नगर क्षेत्र में पुरोहित वर्ग, प्रशासनिक अधिकारी, व्यापारिक, श्रमिक, और शिल्पी वर्ग के लोग रहते थे। अन्य वर्गों में कृषक कुम्हार सोनार नाविक जुलाहे श्रमिक मनके एवं मोहरे बनाने वाले शिल्पी तथा बढ़ई प्रमुख थे। सिंधु सभ्यता से दास प्रथा के प्रचलन की भी जानकारी प्राप्त होती है। सिंधु सभ्यता का समाज मातृ प्रधानात्मक था। यहां से सबसे अधिक नारी मातृ देवी की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं।
सिंधु सभ्यता के लोथल से 3 युगल शवाधान व कालीबंगा से 1 युगल शवाधान प्राप्त हुए हैं।जिससे सिंधु सभ्यता में सती प्रथा के प्रचलन की जानकारी प्राप्त होती है। सिंधु सभ्यता के लोग सूती वस्त्र पहनते थे। मोहनजोदड़ो, कालीबंगा ,आलमगीरपुर से कपड़ों के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
स्त्रियां सुंदर दिखने के लिए सौंदर्य प्रसाधनों(लिपस्टिक, काजल, पाउडर आदि) का प्रयोग करती थी। नर और नारी दोनों ही सोने, चांदी, कासा, तावा, हाथी दांत व मिट्टी के आभूषण धारण करते थे। समाज में वेश्यावृत्ति का भी प्रचलन माना जाता है।
सिंधु सभ्यता के लोग मनोरंजन के लिए नृत्य, संगीत, शिकार करना, मछली पकड़ना, मिट्टी के खिलौने आदि का प्रयोग करते थे।
हड़प्पा सभ्यता का आर्थिक जीवन:-
- व्यापार की प्रधानता थी, किंतु कृषि भी मजबूत स्थिति में थी।
- प्रमुख आधार-कृषि, पशुपालन, व्यापार व शिल्प था।
कृषि-
- कृषि कार्य के लिए नदियों के जल, वर्षा के जल एवं कुआं का उपयोग करते थे (नहरो या नालो से सिंचाई के प्रमाण नहीं मिले हैं)
- प्रमुख फसलों में-9 फसलें, चावल, गेहूं, जो, सरसों, मटर, खरबूजा, रागी, कपास थी।
नोट-
- गन्ने का उत्पादन नहीं किया जाता था।
- कपास के प्रथम उत्पादक हड़प्पा बासी लोगों को माना जाता है।
पशुपालन-
- बहुत सारे पशु पाले जाते थे (कुंवर वाला बैल अधिक प्रिय जानवर था)
- लोग दूध, मांस और परिवहन के लिए पशुपालन करते थे।
- मुख्य रूप से गाय, बैल, भेड़, बकरी , सूअर, कुत्ते, ऊंट, हिरण, मोर आदि।
नोट-हड़प्पा सभ्यता के लोग घोड़े, शेर से परिचित नहीं थे। किंतु वाघ से परिचित थे।
उद्योग-
- हड़प्पा सभ्यता के लोग स्थानीयकरण पर आधारित थे
जैसे-
ताम्र उद्योग | हड़प्पा |
वस्त्र उद्योग | मोहनजोदड़ो |
हाथी दांत उद्योग | लोथल |
गुड़िया-मनका उद्योग | चन्हूदरो |
- व्यापार की प्रधानता थी। लोग वस्तुओं का मूल्य संवर्धन कर लाभ कमाते थे।
व्यापार एवं वाणिज्य-
- व्यापार एवं वाणिज्य का बड़ा महत्व था।
- यह व्यापार आंतरिक क्षेत्रों से व पश्चिम एशिया के देशों के साथ होता था।
- व्यापार वस्तु-विनिमय प्रणाली पर आधारित था।
हड़प्पा सभ्यता का धार्मिक जीवन-

- लिपि के ना पड़े जाने के कारण हड़प्पा सभ्यता के धार्मिक जीवन से संबंधित जानकारी ठीक से प्राप्त नहीं हो पाई हैं।
- माञदेवी का स्थान सर्वोच्च
- दूसरे प्रमुख देवता पशुपतिशिव
- लोथल के एक म्रदभांड में पंचतंत्र की कहानियों के चित्र अंकित है।
- पशुपूजन,वनस्पति पूजा, प्रतीक पूजा करते थे।
पशुपूजा के अंतर्गत-
- कुबड वाला बैल
- एक श्रींगी(एक सिंह वाला) पशु
- हिरन
- बाघ आदि।
नोट – मोहनजोदडो से प्राप्त एक मोहर पर तीन मुख वाले, पशुओं से घिरी, योग की मुद्रा में बैठे देवता का अंकन मिलता है,जिसे आदय पशुपति शिव कहा गया।
- हडप्पाई मोहरों पर एक श्रींगी पशु का सर्वाधिक अंकन मिलता है।
- बत्त्ख, कबूतर फाख्ता पक्षी माने जाते है।
- प्रतीक पूजा के अन्तर्गत-स्वास्तिक,लिग और योनि,अग्नि शामिल थे।
- शवाधान के साक्ष्य प्राप्त हुये, जो उनके पारलोकिक जीवन में विश्वास का सूचक है।
- बहुतायत ताबिजों के मिलने से जादु-टोना में विश्वास का अनुमान लगाया जाता है।
हडप्पा सभ्यता का राजनीतिक जीवन-
- स्टुअर्ट पिग्गट ने हडप्पा और मोहनजोदडो को दो राजधानियां बताते हुए पुरोहित शासन प्रणाली के प्रचलन का उल्लेख किया।
- डॉ. आर.एस.शर्मा के अनुसार सिंधु सभ्यता के लोग व्यापार व वाणिज्य पर सबसे अधिक ध्यान देते थे। सम्भवतः हडप्पा का शासन वणिक वर्ग के हाथों में था।
- विलियम हंटर ने जनतांत्रिक शासन प्रणाली का उल्लेख किया।
- ए.एल.वाशम के अनुसार धर्मतांत्रीय शासन प्रणाली थी।
हडप्पा सभ्यता के पतन का कारण-
बाढ-जॉन मार्शल, एस.आर.शव, मैके क्रमशः मोहनजोदडो, चन्हूदडो, लोथल नगर के विनाश का कारण बाढ को बताया।
जलवायु परिवर्तन-आर.एल.स्टिन, अमलानन्द घोष आदि विद्वानों का मानना है। कि जगलों की अतिशय कटाई के कारण जलवायु परिवर्तन हुआ होगा,जिससे ये सभ्यता समाप्त हुई होगीं।
विवर्तनिक हलचल– एम.एस.साहनी, टी.एच.लाम्बिक आदि विद्वानों का मानना है कि भूकम्प व भूस्खलन के कारण इस सभ्यता का पतन हुआ था।
नदियों की दिशा परिवर्तन–एम.एस.वात्स, जार्ज डेत्स कालीबंगा जैसे नगरो के पतन मे रावी व घग्घर नदी के दिशा परिवर्तन को जिम्मेदार माना है।
महामारी – के.वी.आर केनेडी ने हडप्पा सभ्यता के पतन का कारण मलेरिया महामारी को माना।
बाहरी आक्रमण-मार्टीमर व्हीलर, क्रेमर आदि का मानना है कि इस का अंत बाहरी आक्रमण के कारण हुआ।
हडप्पा कालीन कुछ अन्य प्रमुख स्थल व उनकी विशेषताएँ-
सुरकोटदा –
- गुजरात के कच्छ जिले में।
- प्राचीर युक्त बस्ती के साक्ष्य।
- घोडे की अस्थियाँ मिली।
- विशेष प्रकार की कब्रगाह( चार कलश शवाधान के साक्ष्य)
रंगपुर-
- अहमदाबाद जिले में
- सैधव सभ्यता के उत्तरकालीन अवशेष मिलें।
- रोजदी से हाथी के अवशेष मिलें।
कोटदीजी-
- सिन्ध प्रान्त के खेरपुर जिले में
- प्राक हडप्पा स्थल
राखीगढी-
- हरियाणा के जींद जिला
- प्राक हडप्पा स्थल
- भारत में दूसरा बडा हडप्पाकालीन नगर
मीत्ताथल-
- हरियाणा के भिवानी जिले में
- तांबे की कुल्हाडी
रोपड-
- पंजाब में सतलज नदी के तट पर
- स्वतंत्रता के बाद उत्खनित पहला स्थल
- मानव की कब्र के साथ कुत्ते के शवाधान के कारण
संघोल-
- पंजाब के लुधियाना जिले में
- गर्त के साक्ष्य